अबोहर : कभी वह बचपन भी था जब बच्चे गिल्ली डंडा, लुकाछिपी, खो-खो, कंचे आदि खूब खेलते थे। फिर वह जमाना भी आया जब गली मोहल्लों में वीडियो गेम की दुकानें खुल गई और बच्चे अपना अधिकांश समय इन वीडियो गेम की दुकानों में बिताने लगे। कुछ समय और बीता तो कंप्यूटर व लेपटॉप आ गए और बच्चे इन पर व्यस्त हो गए लेकिन आज का बचपन स्मार्टफोन के बीच पल रहा है और स्मार्टफोन के साथ खेली जाने वाली सबसे चर्चित गेम 'पोकेमॉन गो' का दीवाना बना हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेली जाने वाली इस नए गेम 'पोकेमॉन गो' का दीवानापन अबोहर जैसे छोटे शहर में भी इस कद्र बढ़ रहा है कि बच्चे व युवा इसी में व्यस्त दिखाई देने लगे हैं।
अबोहर के 16 वर्षीय युवक सचिन ने गेम को लेकर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि जब उसने इस गेम के बारे में सुना तो उसने समझना और खेलना चाहा और एक ही दिन में उसने इसे सीख भी लिया, यह इसकी दीवानगी का सबसे बड़ा प्रमाण है। करण, विनय, जसबीर ने कहा कि तीन चार लोग इसे मिलकर भी खेलते हैं और टाइम पास करने के लिए उधर-उधर भटकने की बजाए गेम में व्यस्त रहते हैं। मानव ने कहा कि अब तो जो युवा इस गेम के बारे में नहीं जानता, उसे आउट डेटेड ही माना जाता है।
क्या है यह गेम
इस गेम में पोकेमॉन फोन में इतराते, इठलाते अपने पीछे दौड़ाते हैं। इंटरनेट व जीपीएस की मदद से खेली जाने वाली इस गेम में मोबाइल कैमरे का इस्तेमाल किया जाता है और फोन को कहीं पर प्वाइंट करने पर वर्चुअल पोकेमॉन दिखाई देता है जिसे पकड़ने के लिए होड़ लग जाती है। पोकेमॉन पा कर खिलाड़ी को ग्रेड व प्वाइंट्स मिलते हैं। यहां इसे यूसी ब्राउजर से डाउनलोड करके खेला जा रहा है। यह गेम स्मार्टफोन के जीपीएस से आपकी लोकेशन का पता लगा लेता है और उसके बाद स्क्रीन पर ठीक उसी जगह का नक्शा बनता है, जहां पर आप होते हो। अब जैसे जैसे आप जगह बदलोगे, स्क्रीन भी आगे पीछे होती जाती है और उसी जगह का नक्शा आता जाता है। बस उसी जगह से पोकेमॉन को ढूंढ़ना होता है, जहां पोकेमान नजर आए, मोबाइल वाइब्रेट करने लगता है और मोबाइल का कैमरा पोकेमॉन दिखा देता है। अब झट से इस पोकेमॉन को पकड़ना होता है, इसके लिए मोबाइल फोन के स्क्रीन पर एक बाल नजर आती है, इस बॉल को पोकेमॉन की तरफ उछालना होता है, यदि निशाना स्टीक रहा तो पोकेमॉन आपका हुआ।